"मानवाधिकार" की सार्वभौमिक घोषणा इस बात की पुष्टि करती है कि प्रत्येक व्यक्ति न केवल जीवन का, बल्कि गरिमापूर्ण जीवन का भी समान रूप से हकदार है। दिव्यांगजनों को अन्य सभी लोगों के समान अधिकार प्राप्त हैं। हालाँकि, कई कारणों से उन्हें अक्सर दूसरों के साथ समान आधार पर अपने मानवाधिकारों का दावा करने में सामाजिक, कानूनी और व्यावहारिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।एनटीपीसी विशेष आवश्यकता वाले समुदाय का समर्थन करने में सबसे आगे रहा है। एनटीपीसी शारीरिक रूप से दिव्यांगजनों को (1) पुनर्वास के माध्यम से सहायता करता है - एक दिव्यांगजन को इष्टतम मानसिक, शारीरिक और/या सामाजिक कार्यात्मक स्तर तक पहुंचने में सक्षम बना कर और (2) अवसरों की समानता - सभी के लिए शैक्षिक अवसर सुलभ बना कर।
एनटीपीसी फाउंडेशन:
दिसंबर 2004 में पंजीकृत एनटीपीसी फाउंडेशन, समाज के शारीरिक रूप से अक्षम और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की सेवा और उन्हें सशक्त बनाने में नियोजित है।
एनटीपीसी फाउंडेशन की प्रमुख पहल:
अनूठी पहल - दिव्यांगता पुनर्वास केंद्र (डीआरसी)
दिव्यांगजनों केा पुनर्वास, बहाली सर्जनी, इमदाद और उपकरण के क्षेत्र में सेवाएं प्रदान करने के लिए एनटीपीसी फाउन्डेशन द्वारा राष्ट्रीय अस्थि विकलांग संस्थान के सहयोग से टांडा में डीआरसी की स्थापना की गई है। एनटीपीसी रिहंद, कोरबा, दादरी और बोंगाईगांव में चार और डीआरसी स्थापित किए गए हैं ।
अनूठी पहल - सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) केंद्र
पहुंच की दिशा में ब्रेल एक बहुत बड़ा सशक्तिकरण था।
प्रौद्योगिकी में हाल की प्रगति के साथ, यह मान्यता बढ़ रही है कि, यदि आवश्यक अनुकूल और सहायक प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित हों, तो दिव्यांगजन कक्षा और कार्यस्थल में समान रूप से अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
दिव्यांगजनों के वंचन को कम करने के लिए, एनटीपीसी फाउंडेशन ने आईसीटी केंद्र स्थापित किए हैं, जो दृश्य/गतिशीलता/श्रवण अक्षमता वाले व्यक्तियों और अन्य लोगों के लिए नवीनतम सहायक सॉफ्टवेयर और उपकरणों से सुसज्जित हैं।
ये केन्द्र दिल्ली विश्वविद्यालय, गोहाटी विश्वविद्यालय, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर और लखनऊ, अजमेर, तिरुवनंतपुरम और मैसूर में मौजूदा अंध विद्यालयों के साथ संयुक्त रूप से स्थापित किए गए हैं।
अनूठी पहल - डीओटी सह डीएमसी
तपेदिक, एक संक्रामक रोग, दुनिया में मृत्यु का 7वां प्रमुख कारण है।
वर्तमान में भारत में विश्व के लगभग 26% टीबी रोगी हैं - वैश्विक स्तर पर 4 में से 1, जिससे भारत दुनिया में सबसे अधिक टीबी के प्रति संवेदनशील देश बन गया है।
आधुनिक टीबी रोधी उपचार वस्तुतः सभी रोगियों को ठीक कर सकता है, बशर्ते उपचार बिना किसी रुकावट के निर्धारित अवधि तक प्राप्त किया जाए।
उपचार की लंबी अवधि के कारण, जो मरीज उपचार शुरू होने के तुरंत बाद बेहतर महसूस करने लगते हैं या क्योंकि वे गरीबी और बेरोजगारी जैसी अन्य समस्याओं का सामना करते हैं, वे इलाज बंद कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है और/या मल्टीड्रग-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) विकसित हो जाती है।
इस प्रकार, टीबी से पीड़ित रोगियों का इलाज तब तक प्रभावी ढंग से किया जाना चाहिए, जब तक कि दवाओं के पूरे कोर्स की उपलब्धता और उपचार के लिए रोगी के अनुपालन की निगरानी के लिए एक प्रणाली बनाया जाना सुनिश्चित न हो जाए।
एनटीपीसी भारत सरकार के संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) में भागीदार है, जो एनटीपीसी फाउंडेशन के माध्यम से 12 प्रत्यक्ष अवलोकन उपचार सह नामित माइक्रोस्कोपी केंद्र (डीओटी सह डीएमसी) का संचालन कर रहा है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक टीबी रोगी जो किसी स्टेशन के 25-30 किलोमीटर के आसपास रहता है उसको टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत लाया जाए और उपचार का पूरा कोर्स किया जाता है।